निकिल के शोधन की माण्ड विधि में निक्रिल की किया कार्बन मोनो ऑक्साइड के कराने पर निकिल टेट्रा कार्बोनिल की वाष्प बनती है जो एक संकुल यौगिक है। इसे गर्म करने पर यह पुनः विघटित होकर शुद्ध निक्रिल देता है। Ni + 4Co → Ni (Co)4 → Ni + 4Co

निकिल के शोधन की माण्ड विधि में निक्रिल की किया कार्बन मोनो ऑक्साइड के कराने पर निकिल टेट्रा कार्बोनिल की वाष्प बनती है जो एक संकुल यौगिक है। इसे गर्म करने पर यह पुनः विघटित होकर शुद्ध निक्रिल देता है। Ni + 4Co → Ni (Co)4 → Ni + 4Co

[Cr (H2O)4 Br2]Cl- का आयनन समावयव होगा – [Cr (H2O)4 BrCI] Br

वर्नर सिद्धान्त के अनुसार प्राथमिक संयोजकता आयनिक होती है और ऋणायनों से संतुष्ट रहती है जबकि द्वितीयक संयोजकतता अनआयनिक होती है। यह उदासीन अणुओं या ऋणायन से संतुष्ट रहती हैं यह उपसहसंयोजन संख्या के बराबर होती है। इसे बड़े कोष्ठक में रखकर प्रदर्शित करते हैं। जबकि प्राथमिक संयोजकता कोष्ठक से बाहर होती है। द्वितीयक संयोजकता का मान धातु के लिये निश्चित होता है।

यह समावयवता उभयदंती लिगेण्डउ युक्त उपसहसंयोजक यौगिकों में पाई जाती है। ये यौगिक एक तरह से कियात्मक समूह समावयवी होते हैं । इसे बंधनी समावयवता कहते हैं।आयनन समावयवता में आयन और लिगेण्ड आपस में अपना स्थान बदल लेते हैं। जिससे विलयन में भिन्न-2 आयन प्राप्त होते हैं।

(a) प्रबल क्षेत्र लिंगेण्ड यदि लिगेण्ड प्रबल इलेक्ट्रॉन युग्म दाता हो तो यह धातु में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रोंन का युग्मन कर देता है क्योंकि प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड के लिये व्रिपाटून उर्जा ∆0 का मान युग्मन उर्जा से अधिक होता है अर्थात् ∆0 > π इस प्रकार आन्तरिक d-कक्षक रिक्त हो जाता है, जो संकरण में भाग लेते हैं और बनने वाले संकुल को उच्च चक्ण संकुल कहते हैं। (b) दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड यदि लिगेण्ड दुर्बल इलेक्ट्रॉन युग्म दाता हो तो यह धातु के अयुग्मित de – का युग्मन नहीं कर सकता है। इसमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन अधिक रहने से चुम्बकीय आघूर्ण का मान बढ़ता है। दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड के लिये ∆0 का मान π से कम होता है अर्थात ∆0 > π इस प्रकार बाह्य d- कक्षक संकरण में भाग लेते हैं और बनने वाले संकुल को उच्च चक्रण संकुल कहते हैं।

Post a Comment

0 Comments